SYMPATHY TO SELF-DESTRUCTION: THE RISING NATIONAL COST OF ILLEGAL MIGRATION
- S.S.TEJASKUMAR

- Nov 17
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पूरी दुनिया आज एक ऐसी चुनौती से गुजर रही है जिसकी जड़ें मानवीयता के पवित्र मूल्यों में छिपी हैं, लेकिन परिणाम एक राष्ट्र की स्थिरता को अंदर से हिला देने वाले हैं। यह चुनौती है—अवैध शरणार्थियों और अनियंत्रित माइग्रेशन की। विश्व के कई देशों की तरह ब्रिटेन भी इस संकट से जूझ रहा है। हाल ही में ब्रिटेन की होम सेक्रेटरी शबाना महमूद ने जिस साफ-साफ शब्दों में इसे “राष्ट्रीय विभाजन की जड़” बताया, उससे यह स्पष्ट हो गया कि समस्या केवल संख्या की नहीं, बल्कि राष्ट्र की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और सुरक्षा संरचना के भविष्य की है।
शबाना महमूद ने कहा—
“हमारा सालों से चला आ रहा शरण प्रणाली का तंत्र टूट चुका है। अवैध माइग्रेशन ने देश में विभाजन पैदा कर दिया है। इसे ठीक करना एक ‘मोरल मिशन’ है।”

यह कथन सिर्फ ब्रिटेन का सच नहीं, बल्कि दुनिया के हर लोकतांत्रिक राष्ट्र की सच्चाई है—जहाँ मानवीयता की आड़ में घुसपैठ, अपराध, कट्टरता, और राजनीतिक ध्रुवीकरण पनपने लगा है।
मानवीयता और राष्ट्रीय सुरक्षा का संतुलन क्यों महत्वपूर्ण है?
दुनिया ने इतिहास में कई बार देखा है कि शरणार्थी संकट के गलत प्रबंधन ने बेहद खतरनाक परिणाम दिए:
लेबनान एक समय आर्थिक रूप से समृद्ध और स्थिर था। लेकिन फिलिस्तीनी शरणार्थियों की अनियंत्रित आमद के बाद देश 40 साल के गृहयुद्ध में झोंक दिया गया।
जर्मनी 2015 के शरणार्थी संकट के बाद आतंकवादी हमलों और सांस्कृतिक संघर्षों का सामना कर रहा है।
स्वीडन अपनी “ओपन डोर” नीति के कारण आज अपराध और गैंग युद्धों से जूझ रहा है।
ग्रेस, इटली, स्पेन पर अफ्रीकी अवैध प्रवासियों का दबाव इतना बढ़ गया कि उनकी सरकारों ने आपातकालीन नियम लागू करने पड़े।
यही कारण है कि ब्रिटेन अब डेनमार्क की तरह कड़े नियमों की ओर बढ़ रहा है—क्योंकि दुनिया ने यह समझ लिया है कि मानवीयता तभी टिक सकती है जब राष्ट्र की सुरक्षा मजबूत हो। यदि सुरक्षा ढह जाए, तो मानवीयता भी अपने अर्थ खो देती है।
जब किसी राष्ट्र की सीमाएँ कागज़ी औपचारिकताओं में बदल जाएँ और “मानवीयता” का अर्थ केवल आर्थिक शरण लेने वालों के लिए दरवाज़े खोल देना हो जाए, तब इतिहास बताता है कि वही मानवता अंततः उस राष्ट्र की सामाजिक एकता, सांस्कृतिक निरंतरता और राष्ट्रीय सुरक्षा को खा जाती है। यही भय आज यूरोप के कई देशों में हकीकत बन चुका है—फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम, स्वीडन, इटली, और ब्रिटेन—सबके उदाहरण स्पष्ट हैं कि अवैध शरणार्थियों के नाम पर आने वाली आबादी सिर्फ शरण नहीं लेती, बल्कि अपने साथ ऐसी चुनौतियाँ लाती है जो किसी भी देश की आंतरिक संरचना को हिला सकती हैं। ब्रिटेन की होम सेक्रेटरी शबाना महमूद ने हाल ही में जिस “टेम्पररी-असाइलम मॉडल” की घोषणा की—जहाँ शरणार्थियों को केवल अस्थायी ठहराव मिलेगा, स्थायी नागरिकता का रास्ता 20 साल लंबा कर दिया जाएगा, और राज्य की अनिवार्य सहायता (हाउसिंग, अलाउंस) हटाई जाएगी—वह इसी डर से जन्मा कदम है कि अवैध प्रवास अब ब्रिटेन की राष्ट्रीय एकता को तोड़ रहा है। पिछले पाँच वर्षों में ब्रिटेन जैसी स्थिर लोकतंत्रों में भी यही हुआ—2019–2024 के बीच इंग्लैंड के केंट, एसेक्स और मैनचेस्टर में अवैध प्रवासियों द्वारा अपराधों में 45% की बढ़ोतरी दर्ज हुई; छोटी नौकाओं से आने वाले शरणार्थियों में संगठित गैंग, ड्रग नेटवर्क और हिंसक प्रवृत्तियों वाले समूह शामिल पाये गए; और स्थानीय करदाताओं के पैसे से चलने वाली सहायता योजनाओं पर इतना बोझ पड़ा कि ब्रिटेन को 2023 में अकेले “माइग्रेंट हाउसिंग” पर 3.7 बिलियन पाउंड खर्च करने पड़े। क्या यह मानवीयता है, या किसी राष्ट्र की आर्थिक रीढ़ को ध्वस्त करने की प्रक्रिया? राष्ट्रवाद तब जन्म लेता है जब राष्ट्र ख़तरे में आता है, और अवैध प्रवास आज ब्रिटेन के लिए केवल कानून का मुद्दा नहीं बल्कि राष्ट्रीय अस्तित्व का प्रश्न बन चुका है।
यूरोप में यह कहानी और भी भयावह है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने 2020 से अब तक अपने देश में “पैरेलल समाजों” (Parallel Societies) के उभरने की चेतावनी देते हुए कहा कि अवैध प्रवासियों ने कई इलाकों को “नो-गो ज़ोन” में बदल दिया है जहाँ राज्य का कानून नहीं, बल्कि बाहरी समूहों की विचारधारा चलती है। 2023 में नीस, मार्सेय और पेरिस में हुए दंगे इसका प्रमाण हैं—इनमें शामिल लगभग 70% लोग गैर-दस्तावेज़ी प्रवासी थे। स्वीडन, जो दुनिया का सबसे दयालु और उदार शरण स्थल कहा जाता था, वह भी पिछले पाँच वर्षों में शरणार्थी-आधारित गैंग युद्धों का केंद्र बन गया—2019 से 2024 के बीच स्टॉकहोम में बम विस्फोटों और गोलीबारी की घटनाओं में 400% की बढ़ोतरी हुई, और स्वीडिश प्रधानमंत्री को यह स्वीकार करना पड़ा कि “स्वीडन ने असफल प्रवासन नीति के कारण अपना सामाजिक संतुलन खो दिया है।” बेल्जियम भी 2022–23 में शरणार्थी संकट से इतना घिर गया कि ब्रुसेल्स में शरणार्थियों ने पुलिस पर हमले किए, सड़कें कब्जाईं और स्थानीय आबादी को डर के माहौल में जीने पर मजबूर किया। इटली में पिछले पाँच वर्षों में समुद्री मार्ग से आने वाली अवैध भीड़ के कारण बजट पर इतना बोझ पड़ा कि 2023 में प्रधानमंत्री मेलोनी ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर कहा—“ह्यूमैनिटी का अर्थ आत्महत्या नहीं होता।” जर्मनी में 2020–2024 के बीच 700% बढ़े “माइग्रेशन-लिंक्ड सेक्सुअल क्राइम” के आंकड़े यह संकेत देते हैं कि सिर्फ आर्थिक बोझ नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सुरक्षा संकट भी अवैध प्रवास का परिणाम है। इन सभी उदाहरणों में समानता यह है कि मानवीयता के नाम पर शुरू हुई नीति अंत में उस राष्ट्र के सामाजिक ताने-बाने, महिलाओं की सुरक्षा, कर व्यवस्था और सांस्कृतिक पहचान को गंभीर चोट पहुँचा देती है—और यह प्रक्रिया ब्रिटेन में भी तेजी से आकार ले रही है।
ब्रिटेन में शबाना महमूद का नया मॉडल इसीलिए जन्मा है क्योंकि अवैध प्रवास अब केवल “छोटे बोटों” का मामला नहीं, बल्कि राष्ट्रीय विभाजन का मुद्दा बन चुका है। पिछले पाँच वर्षों में ब्रिटेन में स्थानीय समुदायों के बीच विश्वास घटा, सामाजिक ध्रुवीकरण बढ़ा, और ब्रिटिश पहचान पर बहस तेज हुई। नाइजीरियाई, सोमाली, अफ़ग़ान, सीरियाई और अल्बानियाई अवैध प्रवासियों ने उन शहरों में अपराध दर को बढ़ाया जहाँ पहले पुलिस को वर्षों तक गंभीर अपराध देखने को नहीं मिलते थे—लिवरपूल, बर्मिंघम, ब्रैडफर्ड और शेफ़ील्ड इसके उदाहरण हैं। आज ब्रिटिश नागरिक सवाल उठा रहे हैं कि क्या मानवीयता का अर्थ यह है कि उनके करों से चलने वाली सेवाएँ अवैध व्यक्तियों पर खर्च हों? क्या देश की जनसंख्या संरचना बिना जनमत के बदल दी जाए? क्या राष्ट्रीय सुरक्षा को जोखिम में डालकर “उदारता” दिखाई जाए? क्या “शरण” का अर्थ किसी-भी प्रकार की खुली प्रविष्टि है? यही प्रश्न भारत, फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन सबके सामने एक जैसे खड़े हैं—कि जब शरण मानवीयता से आगे बढ़कर एक वैचारिक हथियार बन जाए, जब राजनीतिक दल इसे वोटबैंक में बदल दें, जब NGOs इसे व्यवसाय में बदल दें, और जब मानव तस्करी करने वाले गिरोह इसे उद्योग में बदल दें—तब राष्ट्र को क्या चुनना चाहिए: मानवीयता या अस्तित्व? आज के यूरोप ने अपने उदाहरणों से दुनिया को यह सिखाया है कि यदि राष्ट्र समय पर सीमा-नियंत्रण नहीं करता तो मानवीयता की वही भावना अंततः राष्ट्रवाद को जन्म देती है—और राष्ट्रवाद तब किसी विचारधारा की नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व की रक्षा की स्वाभाविक आवश्यकता बन जाता है।
ब्रिटेन की नई नीति: राष्ट्रवाद, यथार्थ और कठोरता का मिश्रण
शबाना महमूद ने स्पष्ट किया कि यह कदम “जातिवादी” नहीं, बल्कि नैतिक कर्तव्य है—क्योंकि अवैध माइग्रेशन ने ब्रिटेन के:
सामाजिक ताने-बाने
आर्थिक संसाधनों
सार्वजनिक सेवाओं
समुदायों में सामंजस्य
को गहराई से चोट पहुँचाई है।
उनकी नीति के मुख्य बिंदु:
1️⃣ शरणार्थी अब स्थायी रूप से नहीं रह पाएंगे
अब आश्रय = अस्थायी स्थिति
और हर कुछ वर्ष में समीक्षा
→ गलत दस्तावेज़ या झूठा दावा = तत्काल निरस्त
2️⃣ स्थायी निवास (Permanent Settlement) की राह 5 साल से बढ़ाकर 20 वर्ष
मतलब, ब्रिटेन में बस जाना अब आसान नहीं।
3️⃣ शरणार्थियों को मिलने वाला आवास, भत्ता, फंड, आर्थिक सपोर्ट—सब सीमित
अब ब्रिटेन “वेलफेयर मैगनेट” नहीं रहेगा।
4️⃣ ECHR (European Convention on Human Rights) में बड़े बदलाव
जो अवैध घुसपैठियों की जबरन वापसी को रोकता था, उसे कमजोर किया जाएगा।
5️⃣ सार्वजनिक दबाव और सुरक्षा दोनों को प्राथमिकता
→ राष्ट्र पहले, मानवीयता बाद में।
जब मानवीयता राष्ट्रों को तोड़ने का साधन बन जाती है
शबाना महमूद ने कहा—
“अवैध माइग्रेशन लोगों को एक-दूसरे से अलग कर रहा है, विभाजन पैदा कर रहा है। मैं चुप खड़ी नहीं रह सकती।”
यही विभाजन हर उस राष्ट्र में दिखाई देता है जहाँ:
बाहरी आबादी तेजी से बढ़ती है
वे स्थानीय संस्कृति में घुलने से इनकार करते हैं
अपराध बढ़ने लगता है
अलग समुदायों की “पैरेलल सोसायटी” बनती है
राजनीतिक दल उन्हें वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करते हैं
मूल निवासियों में असुरक्षा की भावना फैलती है
भारत भी इस खतरे से अछूता नहीं है।
बांग्लादेशी घुसपैठ ने:
असम
बंगाल
दिल्ली
राजस्थान
महाराष्ट्र
की जनसांख्यिकी बदल दी है।
आज यह केवल कानून का मुद्दा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय अस्तित्व का प्रश्न बन चुका है।
अवैध शरणार्थी: सामाजिक सद्भाव पर सबसे बड़ा प्रहार
किसी भी समुदाय में जीवन जीने के कुछ नियम होते हैं—
यही नियम समाज को जोड़े रखते हैं।
लेकिन जब बड़ी संख्या में बाहर से आए लोग:
स्थानीय कानूनों को चुनौती दें
संस्कृति को न मानें
अलग बस्तियाँ बनाएँ
धार्मिक कट्टरता फैलाएँ
अपराध का स्तर बढ़ाएँ
तो समाज टूटने लगता है।
ब्रिटेन में यही हो रहा है।
यूरोप में यही हुआ।
भारत में भी कई राज्यों में यही हो रहा है।
और यही वजह है कि शबाना महमूद को अत्यंत कठोर नीति लानी पड़ी।

अवैध शरणार्थी का ‘मानवीय चेहरा’ और ‘राष्ट्रीय नुकसान’
संकट यह है कि पीड़ित दिखने वाले सभी लोग सच में पीड़ित नहीं होते।
कई बार शरणार्थियों में:
अपराधी
मानव तस्कर
कट्टरपंथी
एजेंट
राजनीतिक हथियार मिले हैं।
यूरोपीय खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट बताती है:
2015 के शरणार्थी संकट के साथ ही ISIS के प्रशिक्षित आतंकवादी यूरोप में प्रवेश कर गए।
फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रिया में हुए कई हमले ऐसे लोगों ने किए जिन्होंने “शरणार्थी” बनने का नाटक किया।
ब्रिटिश पुलिस के अनुसार, शरणार्थियों में से एक बहुत बड़ा हिस्सा छोटे-बड़े अपराधों में शामिल हो गया है।
यही कारण है कि दुनिया अब कह रही है—
मानवीयता महत्वपूर्ण है, पर राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि।
जब सहानुभूति देश-विरोधी हथियार बन जाए
कई बार “मानवीयता” का उपयोग राजनीतिक और वैचारिक समूह हथियार की तरह करते हैं।
जैसे:
यूरोप के वामपंथी गुट
ब्रिटेन का लिबरल नेटवर्क
अमेरिका का वोक कैंप
भारत का टुकड़े-टुकड़े गैंग
ये लोग अवैध घुसपैठियों की सुरक्षा की वकालत करते हैं, क्योंकि इससे वोट बैंक, सामाजिक तनाव और राजनीतिक लाभ पैदा होता है।
इसलिए शबाना महमूद का कहना सही है—
“अगर हमने अभी कार्रवाई नहीं की, तो भविष्य में शरण प्रणाली ही खत्म हो जाएगी।”
भारत को क्या सीखना चाहिए?
यदि ब्रिटेन जैसा संगठित राष्ट्र अवैध शरणार्थियों के सामने झुक रहा है, तो भारत के लिए यह संकट कहीं अधिक गंभीर हो सकता है—क्योंकि:
हमारी सीमाएँ लंबी और छिद्रित हैं
जनसंख्या बहुत बड़ी है
राजनीतिक दल उन्हें वोट बैंक मानते हैं
घुसपैठ कई राज्यों में जनसांख्यिकीय बदलाव कर चुकी है
कुछ संगठन “मानवीयता” के नाम पर पूरी तरह शेल्टर नेटवर्क चला रहे हैं
भारत को 5 कदम तुरंत सीखने चाहिए:
शरणार्थी = अस्थायी दर्जा (Temporary Status)
जनसांख्यिकीय निगरानी (Demographic Mapping)
कट्टरपंथी तत्वों की Zero Tolerance जांच
घुसपैठियों के लिए तेज निष्कासन (Fast Deportation Mechanism)
राजनीतिक पार्टियों द्वारा वोट बैंक के लिए शरण देना—अपराध घोषित हो
मानवीयता तभी जीवित रहती है जब राष्ट्र सुरक्षित हो
अवैध शरणार्थी केवल “गरीब लोग” नहीं होते।
उनमें से कई ऐसे होते हैं जो:
राष्ट्र के संसाधनों पर बोझ बनते हैं
रोजगार छीनते हैं
स्थानीय सुरक्षा बिगाड़ते हैं
सांस्कृतिक संघर्ष छेड़ते हैं
और अंत में राष्ट्र को आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से तोड़ देते हैं।
राष्ट्रवाद का अर्थ है—
पहले राष्ट्र, फिर मानवता।
क्योंकि यदि राष्ट्र ही नहीं बचा, तो किसके लिए मानवता?
यही कारण है कि ब्रिटेन की नई नीति दुनिया के सभी देशों के लिए एक चेतावनी है:
“करुणा और सीमा दोनों आवश्यक हैं। बिना सीमा की करुणा — राष्ट्र को नष्ट कर देती है।”




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