top of page
Black Chips

THE DYNASTY PARADOX: PUBLIC HUMILIATION, CASTE INSENSITIVITY, AND THE GANDHI FAMILY’S POLITICAL MOLD

ree

भारतीय राजनीति में कई परिवर्तन आए, नए नेता उभरे, नई पार्टियाँ बनीं, लेकिन एक चीज़ दशकों से बिल्कुल नहीं बदली—गांधी परिवार का व्यवहार, उनका सत्ता-केंद्रित राजनीतिक दृष्टिकोण और जनता को केवल चुनावी “स्टेज” की तरह इस्तेमाल करने की आदत। आज जो घटनाएँ राहुल गांधी के इर्द-गिर्द सामने आ रही हैं, वे कोई नई या अलग बात नहीं; यह उसी पुराने राजनीतिक डीएनए की निरंतरता है, जिसे उनकी पूरी वंशावली पालन करती आयी है।


ताज़ा रिपोर्टें बताती हैं कि राहुल गांधी ने उन कांग्रेस नेताओं को बुरी तरह अपमानित किया, यहाँ तक कि थप्पड़ मार दिया, जिन्होंने अमित शाह की चुनावी रणनीति की तारीफ़ की। कांग्रेस नेताओं के अनुसार, राहुल का व्यवहार गुस्से, अहंकार और गहरी असहिष्णुता से भरा था। यह घटना कांग्रेस के भीतर दशकों से चले आ रहे “वन-फैमिली सुप्रीमेसी” की नई मिसाल है जहाँ सत्य, तर्क या लोकतंत्र की जगह सिर्फ़ परिवार की प्रतिष्ठा मायने रखती है।



यह नया नहीं—पुराना पैटर्न है




1982 : राजीव गांधी द्वारा OBC मुख्यमंत्री का अपमान



इसी परिवार के राजीव गांधी ने 1982 में हैदराबाद एयरपोर्ट पर उस समय के आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री, ओबीसी नेता टी. अंजैया को सबके सामने ‘बफून (मूर्ख जोकर)’ कहकर अपमानित किया।

अंजैया एक वरिष्ठ, उम्रदराज, विनम्र नेता थे—लेकिन राजीव के व्यवहार ने उन्हें सबके सामने रोने पर मजबूर कर दिया।


भारतीय संस्कृति में “बुजुर्गों का सम्मान” नैतिक कर्तव्य माना जाता है, परंतु कांग्रेस के राजनीतिक संस्कारों में यह मूल मूल्य कभी रहा ही नहीं। यह पहला संकेत था कि सत्ता जब परिवार के विशेषाधिकार से मिलती है, तो अहंकार उसका स्वाभाविक परिणाम बन जाता है।



1978 : चिकमंगलूर—सिर्फ चुनावी लॉन्चपैड



आपातकाल के बाद जब देश ने कांग्रेस को नकार दिया था, तब इंदिरा गांधी ने कर्नाटक के चिकमंगलूर से उपचुनाव जीतकर वापसी की।

यह सीट उन्हें राजनीतिक पुनर्जीवन देती है, परन्तु—


वह कभी दोबारा उस क्षेत्र में नहीं गईं; जनता उनके लिए सिर्फ एक “राजनीतिक सीढ़ी” थी।



1999 : सोनिया गांधी और बेल्लारी—वही पुराना खेल



सोनिया गांधी ने 1999 में कर्नाटक के बेल्लारी को अपना चुनावी लॉन्चपैड बनाया—यही वह क्षेत्र था जिसने कांग्रेस को 1952 से 13 बार जीत दिलाई थी।

लेकिन विकास?

वायदे?

जवाबदेही?

कुछ भी नहीं।


बेल्लारी के लोगों को जिस प्रगति का वादा किया गया था, वह चुनाव खत्म होते ही गायब हो गया। यह साफ दिखाता है—


गांधी परिवार के लिए क्षेत्र, जनता और स्थानीय समस्याएँ केवल चुनावी मोहरा होती हैं।



आज Wayanad वही कहानी दोहरा रहा है



कर्नाटक के चिकमंगलूर और बेल्लारी की तरह राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने केरल के वायनाड को अपना नया राजनीतिक लॉन्चपैड बनाया।

वायनाड को “दक्षिण से समर्थन” का प्रतीक बनाकर प्रचार किया गया, परन्तु वास्तविक विकास-कार्य या स्थानीय समस्याओं के समाधान की दिशा में ठोस प्रयास बेहद सीमित रहे हैं।


यह “एक बार जीतकर क्षेत्र भूल जाना” गांधी परिवार की आदत रही है।



दक्षिण भारत के प्रति उपेक्षा और नस्लीय टिप्पणियाँ



गांधी परिवार का दक्षिण भारत के प्रति उपेक्षा-भाव सिर्फ राजनीतिक व्यवहार तक सीमित नहीं—बल्कि भाषणों और टिप्पणियों में भी झलकता है।


सबसे चौंकाने वाली टिप्पणी आई सैम पित्रोदा से—जो गांधी परिवार के सबसे भरोसेमंद सलाहकार हैं। उन्होंने कहा:


“South Indians look like Africans.”

यह टिप्पणी केवल नस्लवादी नहीं थी—यह कांग्रेस की उस सोच को दर्शाती है जिसमें पहचान, रंग और भिन्नता के प्रति सम्मान मौजूद ही नहीं।


दक्षिण भारतीयों का अपमान कांग्रेस की राजनीतिक शैली का एक लंबा इतिहास है—जहाँ चुनाव में उनकी भावनाओं को उपयोग किया जाता है, और जीत के बाद भूल जाता है।



राहुल गांधी का व्यवहार—वंशीय अहंकार की निरंतरता



आज राहुल गांधी द्वारा पार्टी नेताओं को डांटना, अपमानित करना और हिंसा पर उतर आना कोई “अचानक आई समस्या” नहीं, बल्कि उसी पारिवारिक राजनीतिक मानसिकता का प्रतिबिंब है जिसका इतिहास इंदिरा, राजीव और सोनिया तक जाता है।


कांग्रेस में लोकतांत्रिक संस्कृति कभी विकसित ही नहीं हुई।

यह परिवार-केंद्रित और व्यक्ति-पूजक पार्टी है जहाँ:


  • विरोध = अपमान

  • सुझाव = विद्रोह

  • प्रशंसा (किसी और की) = अपराध

  • लोकतंत्र = औपचारिक शब्द

  • पार्टी = परिवार का विस्तार




कांग्रेस का असली ध्येय : सत्ता पाना, जनता नहीं



इस पूरे ऐतिहासिक पैटर्न में तीन चीज़ें बिल्कुल स्पष्ट दिखाई देती हैं—



1. सत्ता ही अंतिम उद्देश्य है



चाहे चिकमंगलूर हो, बेल्लारी हो या वायनाड—हर क्षेत्र गांधी परिवार के लिए सिर्फ चुनावी लॉन्चपैड बनकर रह गया।

जिम्मेदारी? भूल जाइए।



2. अहंकार और जातिवाद गहराई तक मौजूद है



टी. अंजैया का अपमान, दक्षिण भारतीयों पर नस्लीय टिप्पणी—इन सब में एक गहरी मानसिकता छिपी है।



3. जनता और कार्यकर्ताओं की आवाज़ का कोई मूल्य नहीं



नेता अपने लोगों के साथ सम्मान से नहीं, बल्कि “राजवंश” की तरह पेश आते हैं।



निष्कर्ष : पैटर्न बदलता नहीं—समय बदलता है



गांधी परिवार के व्यवहार में पिछले 50 वर्षों से कोई परिवर्तन नहीं आया है।

चाहे नेता कोई भी हो—इंदिरा, राजीव, सोनिया या राहुल—उनकी राजनीति का मूल चरित्र वही है:


  • सत्ता का उपयोग, सेवा का नहीं

  • जनता का इस्तेमाल, समाधान का नहीं

  • अभिमान, असहिष्णुता और जातिवादी मानसिकता

  • दक्षिण भारत को राजनीतिक संसाधन की तरह देखना



और जब आज राहुल गांधी अपने ही पार्टी नेताओं पर हाथ उठा रहे हैं, तो यह उसी “वंशवादी राजनीतिक डीएनए” की ताज़ा कड़ी है—जो अब कांग्रेस को गहरे संकट की तरफ धकेल रहा है।


Comments


bottom of page